आज का सुविचार
? तिथि १३. ११. २०२०
देव कृपा की प्राप्ति ,,,,,,,,,,,,,,,,,
? देवो एवं प्रभु कृपा प्राप्त करने के लिए आपका तन , मन एवं धन शुद्ध होना चाहिए ।
? “तन की शुद्धि” के लिए – यदि आप नहाना भूल भी जाएँ तो कोई बात नहीं मगर अपने वृद्ध माँ-बाप को नहलाना या उनकी सेवा का कोई भी अवसर मत भूलना क्योंकि इस पुण्य की कमाई से आप का तन उस समय भी स्वच्छ रहेगा जब आपने इस को (मृत्युपरांत ) अग्नि देव को समर्पित करना होता है ! देव पुण्य कर्म से प्रसन्न होते हैं क्योंकि पुण्य वहीं कमाता है जिसके देवीक विचार है. देवो को शुद्ध चीज़ समर्पित करने से देव कृपा प्राप्त होती है जो आपके लिए सुख समृद्धि को आकर्षित करती है ! देव ही तो सुख समृद्धि देते है !
? “मन की शुद्धि” सुविचारों के उत्पादन के लिए आवश्यक है ! अलग अलग सुविचार अलग अलग देव का नाम है ! आपके रचनात्मक विचार- ब्रह्मा , सकारात्मक विचार- विष्णु एवं सहांरात्मक ( नकारात्मक एवं अहंकार का संहार करनेवाली सोच ) विचार- शिव है ! संतोष का उत्पादन आपको सुखी बनाएगा ! अतः देवो ( सकारात्मक सोच ) को धारण (Perception ) करो तामसिक सोच को नहीं ( काम, क्रोध, मद ,लोभ एवं मोह – साथ ही इर्षा एवं द्वेष )! अपनी प्रार्थना में हमेशा अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी शुभ की कामना करो। मन की शुद्धि के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं।
आचार्य चाणक्य ने सही कहा था= ” देव पत्थर की मूर्तियों में नहीं है वह तो हमारी अनुभूति ( सुविचारों में ) है !”
? “धन की शुद्धि” के लिए – आवश्यकता से अधिक जहाँ संग्रह होने लगता है बस वहीँ धन अशुद्ध हो जाता है। यह हमारे ऋषियों के अपरिग्रह ( भौतिक चीज़ों का संग्रह ना करना ) के सिद्धांत की अवमानना है ! ऐसे धन में लक्ष्मी का नहीं दरिद्रा का वास होता है ! दरिद्रा लक्ष्मी जी की बड़ी बहन है परन्तु तामसिक प्रवृति की है जो विषय भोग में खर्च होती है या नष्ट होती है साथ ही जड़ता , मूढ़ता एवं अज्ञान का उत्पादन करती है ! कैसे भी हो आपका धन शुद्ध हो एवं सेवाकार्यों में लगे। धन-शुद्धि के लिए कोई अलग से अनुष्ठान कराने की आवश्यकता नहीं।बस आपकी देविक सोच ही काफी है ! जिसके ये तीनों शुद्ध हैं उसी का जीवन शुद्ध है और प्रभु कृपा प्राप्त करने का अधिकारी.
??? जय श्री राम , जय महावीर हनुमान ???
??? जय सर्वदेवमयी यज्ञेश्वरी गौ माता ???
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भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
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स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **
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हमेशा ध्यान में रखिये —
” आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ग्यान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.
जिस प्रकार एक छोटे से बीज़ में विशाल वट वृक्ष समाया होता है उसी प्रकार आप में अनंत क्षमताएं समायी हुईं हैं l आवश्यकता है उस ज्ञान की / अपना बौधिक एवं शैक्षणिक स्तर को उन्नत करने की जिसे प्राप्त कर आप महानता प्राप्त कर सके !
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आओ हम सब वृक्ष लगाऐं धरती का श्रृंगार करें।
मातृभूमि को प्रतिपल महकाऐं,जीवन से हम प्रेम करें।।
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Note ; कृपया पोस्ट के साथ ही #देवलोक_अग्निहोत्र का page भी लाइक करें और इहलोक में श्रेष्ठतम पुण्यो का संचय करने के लिए अति उत्तम ज्ञान प्राप्त करे ! देवलोक अग्निहोत्र सदैव आपको नेक एवं श्रेष्ठ कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे ताकि अति उत्तम पुण्य कमाए और परलोक में इच्छानुसार लोक प्राप्त करे. जय माता गौ गंगा गायत्री.
प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है !एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है lपीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सेंकड़ों यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है l
छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
‘दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। ‘
इस्लामी शिक्षा में पेड़ लगाने और वातावरण को हराभरा रखने पर जोर दिया गया है। पेड़ लगाने को सदका अथवा पुण्य का काम कहा गया है। पेड़ को पानी देना किसी मोमिन को पानी पिलाने के समान बताया गया है।
जय गो गंगा गायत्री माता की ????