आज का मानव अंधा हो रहा
हे भोले नाथ कृपा बरसाओ मानवता पर !
आज का मानव अँधा हो गया है धन पर !!
वो भूल गया प्रक्रति को सताना नहीं था !
मगर अपनी कमाई के प्रति वो सजग था !!
भूल चूका वो सारे रिश्ते इस धरती पर !
लालच में आ कर होटल बनाये तेरी धरा पर !!
पैसे में सब कुछ भूल गया न ध्यान तेरे क्रोध पर !
आज जो हाल हुआ देख खुद रोया अपनी भूल पर !!
धरती से खिलवाड़ नमी को भी न छोड़ा उसने !
आज खुद तो लापता है अछों को भी न छोड़ा उसने !!
भोले की लीला नहीं जाना समां गया जल में !
अपनी करनी दूसरों को भी डुबो गया जल में !!
प्रक्रति को न सताओ ऐ धरती पर महल बनाने वालो !
किसी श्रद्धालू के घर में अँधेरा करने वालो !!
उस की तो दुनिया मिट गयी तुम्हारी करनी करने वालो !!
भगवान् के बनाये नियम के विरुद्ध चलने वालो !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ