आज का नेता
तवारीख़ में दफ़्न मुर्दों को उखाड़ रहे हैं ,
अपनी -अपनी दलीले पेश कर अवाम को
बरग़ला रहे हैं ,
हालाते हाज़िरा से भटका अवाम को
गुम़राह कर रहे हैं ,
मुल्क के मुस्तक़बिल की इन्हें
फ़िक्र नहीं है ,
अपनी – अपनी सियासत की रोटी सेंकने की
इन्हें पड़ी हैं ,
कहीं जात , कहीं जज़्बात ,कहीं ज़मात का भरम फैला अपना सियासी दांंव खेल रहे हैं ,
अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश में
इन्होंने अवाम को भेड़ बनाकर रख दिया है ,
चंद पैसों और मुफ्तखोरी के लालच में
इनके इशारों पर नाचने के लिए मजबूर कर दिया है,
अपनी सियासी खुदगर्जी की खातिर ये
मुल्क के आईन का क़त्ल करने से
भी नहीं चूकते है ,
इनका बस चले तो ये खुदगर्ज़ अपना ज़मीर बेच
अपने मुल्क को दीगर मुल्क के हाथों
गिरवी रख सकते हैं।