आज का इंसान
आज अपनापन है तो कोई मजबूरी है
मजबूरी दूर हुई तो समझो तुझसे दूरी है
आज के इंसान की यही कहानी है
जब गम है अमृत है, ना तो पानी है
रिश्तों के तरु कब के झड़ गए हैं
घाव पुराने भी अब तो अड़ गए हैं
अनजान डगर देख अचरज नहीं होता
अब गम गहरा देख भी मानव नहीं रोता
दुख-सुख का कोई भाव नजर नहीं आता
बुढ़ापे तक जाए ऐसा अजर नहीं आता।