आज – कल
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
आज – कल
जाने अन्जाने पल
कोई मकसद कैसे होगा हल
भूलना आसान नहीं होता
याद दिला देंगे
ये चित्र आज
नही तो कल
सोचा था भविष्य खूबसूरत होगा
गुजरे सालों से ये पल
बेहतर होगा, हुआ भी
मगर, खो गया बहुत कुछ
जो अब न कभी लौट पायेगा
फिर , न आज न कल
कविता में भावों
को ढाल पाना
वक्त को फिर से
आइना दिखाना
तुम से मिलने का बहाना
यादों में हो पायेगा
ख्वाब सजायेगा
मगर हकीकत न रे न
वो दिन अब कहां आयेगा
एक अबोध बालक तो
सोचता ही रह जाएगा
जाने अन्जाने पल
कोई मकसद कैसे होगा हल
भूलना आसान नहीं होता
याद दिला देंगे
ये चित्र आज
नही तो कल