आज कल
बदली बदली फिज़ाएं क्यूँ हैं आजकल
बेरुखी की हवाएँ क्यूँ हैं आजकल
दिल में नफरतें भरी प्यार की है कमी
बढ़ रही अब जफ़ाएं क्यूँ हैं आजकल।
अपने भी कर रहे हैं पराया सलूक
आतीं न अपनों की सदाएं क्यूँ हैं आजकल
जीते जी ही यहाँ कोई किसी का नहीं
मर कर भटकती आत्माएँ क्यूँ हैं आजकल
न मुहब्बत रही न मुरव्वत रही
कोई सुने न सुनाए हैं आजकल।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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