आज एक मुसाफिर, गांव चला।
धूमिल धूसरित, धूल उड़ाता।
कुछ धुंधली, तस्वीर बनाता।।
कुछ बिखरी बिछड़ी यादों के।
मधुर उमंगे, दिल मे सजाता।।
मन छोड़ शहर की, ताव चला।
आज एक मुसाफिर, गांव चला।।
जब छोड़, शहर को निकला था।
तब पत्थर दिल भी, पिघला था।।
जाने किन किन को, छोड़ चला।
पाले सपने नज़रो में, विरला था।।
वो आंखों में अश्क, छुपाव चला।
आज एक मुसाफिर, गांव चला।।
दिल देख रहा है, सुनहरे सपने।
क्या फिर मिलेंगे, वही खिलोने।।
वह हाथी घोड़े, वह गुड्डे गुड़िये।
वो नटखट साथी, सखा सलोने।।
बन कर कागज़ की, नाव चला।
आज एक मुसाफिर, गांव चला।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १२/०२/२०२१)