आज उसकी आँखों मे देखा
आज उसकी आँखो में देखा मैंने गुमाँ
टूटा दिल मेरा तो फासिले हुए दरमियाँ
हम तीरगी में रौशनी ढूढ़ने चले थे मियां
मेरी बेबसी को वो जिंदगी कहते थे नदान
मैं रोता रहा तो आसुंओं की बाढ आ गई
फिर वो उसमे नहा धोकर चल दिए श्रीमान
गम की शहनाई गूंज उठी है सबके सीने में
मेरी बदनसीबी देख कर रो गया सारा जहाँ
रिमझिम बारिश अश्को और भीगा मौसम
मेरे संग रो रहा आज वो घमण्डी आसमान
दर्द की सुलगती ये आग जाने कब बुझेगी
अशोक का घर जला खत्म उसकी उड़ान
अशोक सपड़ा की कलम से