आज इस कांच के बर्तन को
आज
मेरे हाथ से फिसलकर
इस कांच के बर्तन को
टूटना ही था
एक न एक दिन
जाने का तो
सबका मुकर्रर होता है
चाहे फिर वह कोई चीज हो या
आदमी
चाहे तो कितनी भी
नजाकत से
नफासत से और
प्यार से
पंख सहलाते रहो अपने
पालतू परिन्दे के
सौ तालों में बंद एक पिंजड़े से
निकलकर
इसकी जान को
एक तय समय पर
उड़ जाना ही होता है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001