आज अपनी मोहब्बत को ज़ार ज़ार होते देखा है
आज अपनी मोहब्बत को ज़ार ज़ार होते देखा है
नादान दिल के दर्द को संभाल कर देखा है
अपने आंसुओं को छलनी से छान कर देखा है
रूठती मनाती खुशियों को चंद पलों में तिलमिलाते हुए देखा है
आज……………………
पतझड़ में सावन के इंतजार को देखा है
जिनसे मोहब्बत की थी कभी
उन्हें किसी और की बाहों में सिमटे हुए देखा है
नादान दिल के दर्द को संभाल कर देखा है
आज………….,…..
अपने अश्कों को पलकों से गिरने से कभी रोका है
कभी उनके प्यार को आंसुओं के समंदर में भिगोते हुए देखा है
क्यों किसी के प्यार को हमारी वफा रोक ना पाई
हमारी इस वफा को मिली प्यार में बेवफाई
मेरी दुनिया से हो गए तुम रुखसत ज़रूर
मगर तुम्हारे आने के इंतजार को इन आंखों ने बेपलक निहार कर देखा है
अपने आंसुओं को छलनी से छान कर देखा है
आज…………… ……..
वो कसमें वो वादे वो गुनगुनाते गीतों की फरियादें
सजी हुई थी जो महफिले कभी उनको बेजार होते देखा है कभी शिकायतों भरी चिट्टियां पढ़ी थी हमने
आज उन शिकायतों को शिकायत करते देखा है
रूठती मनाती हुई खुशियों को तिलमिलाते हुए देखा है
आज अपनी मोहब्बत को ज़ार ज़ार होते देखा है