आज अकेले में
◆आज अकेले में◆
•••••••••••••••••••••
वो बालू की सड़कें
जिसमें चले ईंट की मोटर
हमने खाये बर्फ गोले
जिद्दी बन रो-धोकर
सब ढूंढता हूँ मैं
आज अकेले में।
आज अकेले में।
सूखे डंठलों को गढ़ाके
पलाश के पत्ते ओढ़ाके
गुड्डे गुड़िया की ब्याह रचाया
दुनियादारी उन्हें सिखाया।
सब याद करके हंसता हूँ मैं
आज अकेले में।
आज अकेले में।
वो कागज के टुकड़े
बनते रूपयों की बंडल।
नलकूप की खुदाई करती
बांस के पोले डंठल।
वो पल पाने को मरता हूँ मैं
आज अकेले में।
आज अकेले में।