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3 Jul 2017 · 1 min read

आजा गगन

गगन तेरे मैं खौंफ का अनोखा गान छुपा,
मग्न ह्रदय से किसान तेरा बखान करता।
तेरी आवाजे कब पापियों में खौंफ लायेंगी,,
आवाजों का जादू आज भी कुछ न करता।।

तेरी गडगड़ाहटे कब दुनिया के खोरो में,
शांति, ईमान अहिंसा का परिवेश लायेंगी।
गगन चारों ओर बेईमानों में डर लेंके आजा,,
ताकि किसान का पेट भूख ना सिलायेंगी।।

घर इक कोना ढूँढे ऐसा ए -मतवाले बादल,
तेरी गडगड़ाहटे अदभुत आवाजे लें आयें।
तराई – तराई का वेश लिये सूदखोरों में,,
ताकि उनकी बेईमानी कों तु जिंदा दफनायें ।।

परिवेश देख कर्षक की आशा जागे ऐसा,
तानाशाही ,खोरो का भंवरा गुमें जैसा।
आकर करदें किसान को आजाद ए-गगन,,
ताकि किसान अपनी उम्र का बढा सके रेशा।।

रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां, राजसमंद
7300174927

Language: Hindi
223 Views
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