” आजादी “
” आजादी ”
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आज खुद से
खुद को मुझे मिल लेने दो
परिंदा हूं कब से
पिंजड़ों में जकड़ा हुआ
मुझे बांधो मत
मुक्त गगन में उड़ लेने दो ।
अभी चलना सीखा ही था
कुछ दूर तो घूम लेने दो
कतरों ना कोपल पंखों को
अभी इनमें उड़ान कहा
जानता हूं कल का ठिकाना नहीं
अभी तो चैन से रह लेने दो।
कुछ पल बची जिंदगी की
सुकून से रह लेने दो
जिंदगी जकड़ी हुई थी
अब तक जंजीरों से
मत बढ़ाओ फासलों को
नई सुबह हो लेने दो ।
अंधेरे ही अंधेरे थे सफर में
नई मंजिल ढूंढ़ लेने दो
अभी रास्तों में ही भटका था
मेरा कोई ठिकाना कहा
अभी आशियाना बनाना है
जी भर के जी लेने दो ।
आज हुई है नई सुबह
उड़ान भर लेने दो
देखता हूं कहा तक है
आसमां की सीमा
अपने हौसलों की भी
पहचान कर लेने दो ।
आशाओं का दीप लिए उड़ा हूं
जुगनूओ की तरह जगमगा लेने दो
कुछ दुआओ का असर है
और कुछ वक्त ने सीखा दिया
अब मौन ना रहो कुछ बोलों
छलकी आंखों को भी अब मुस्करा लेने दो।
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सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी)