आजादी का सुख
“अरी बहन चमेली, तुम्हारे पत्ते आज मुरझाए-से क्यों लग रहे हैं?”
बरामदे पर रखे गमले में शान से खड़े गुलाब के पौधे ने क्यारी में खड़े चमेली के पौधे से पूछा।
“अरे कुछ नहीं भाई, आज धूप काफी तेज है न, इसलिए मेरे पत्ते थोड़े मुरझाए-से हैं। सूरज ढलते मैं फिर तरोताजा हो जाउंगी।” चमेली ने मुस्कुराते हुए कहा।
“हाँ…..हाँ…..हाँ…….! मेरे तो मजे हैं। खूबसूरत गमले में रहता हूँ। तेज धूप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
तुम तो एक जगह पड़ी रहती हो। मैं तो कभी सुबह की धूप खाने तेरे पास क्यारी में ले जाया जाता हूँ, कभी सीढ़ी पर रहता हूँ तो कभी छत पर भी। वहां से तो मैं शहर के नजारे भी देखता हूँ।” गुलाब ने चमेली पर हँसते हुए कहा।
अरे तू क्या जाने खुली हवा में और धरती माँ की गोद में रहने का क्या मजा है । तू तो गमले में कैद रहता है। तुम्हें क्या पता आजादी का सुख क्या होता है? तुम तो पानी भी पीते हो दूसरे की मर्जी से।” चमेली ने सच्चाई जाहिर की।
आए दिन दोनों में ऐसी तकरार होती रहती थी।
एक रात जोरों की आँधी आई। गुलाब तो आराम से बरामदे में सोया रहा, परंतु क्यारियों के बहुत-से फूल नष्ट हो गये। चमेली की भी पत्तियाँ झड़ गई। कुछ टहनियाँ भी टूट गईं।
सुबह-सुबह गुलाब ने फिर चमेली को ताना मारते हुए कहा, “तेरी आजादी किस काम की ? कैसा बुरा हाल बन गया तेरा, अब बता तू भली या मैं भला?”
“अरे ये तो मामूली-सी चोटें हैं। चंद दिनों में ठीक हो जाएंगी। थोड़ी कष्ट सहने की भी आदत होनी चाहिए।” चमेली ने कहा।
“हाँ,हाँ! तू तो ऐसा ही कहेगी।” गुलाब तुनक कर बोला।
इसी तरह लड़ते-झगड़ते एक साल बीत गया।
” ओह….. आह…..आह….हाय!”
एक रात अचानक चमेली ने किसी के कराहने की आवाज सुनी। उसने चारों ओर नजरें दौड़ाई पर अंधेरे में कुछ नजर नहीं आया।
अगली सुबह गुलाब कुछ उदास नज़र आ रहा था। उसके चेहरे से रौनक गायब थी।
“गुलाब भाई, तुम आज उदास क्यों हो?” चमेली ने पूछा।
“क्या बताऊं बहन, मैं तो रात भर सो न पाया। मेरी जड़ों में भयानक दर्द है। सारी रात मैं छटपटाता रहा।” गुलाब उदास हो कर बोला।
“क्या हो गया तुम्हारी जड़ों में?” चमेली ने हमदर्दी जताते हुए पूछा।
” इस गमले में मेरी जड़ें सिकुड़ती जा रही हैं। मुझे घुटन महसूस हो रही है। अब मुझे आजादी का मतलब समझ में आ रहा है। बहन, मेरी किसी तरह मदद करो।”
गुलाब ने चमेली से कहा।
” मुझे कुछ उपाय सोचने दो भाई, फिर मैं बताती हूँ।” चमेली यह कहते हुए सोचने लगी।
काफी सोचने के बाद चमेली ने गुलाब को रास्ता सुझाया-
“भाई, तुम अपनी सारी ताकत जड़ों में लगा दो ताकि ये गमले को तोड़ सके। एक बार गमला टूट जाए,तो तुम्हें आजादी मिल जाएगी।”
“नहीं बहन, मुझसे यह नहीं हो पायेगा।” गुलाब उदास हो कर बोला।
“अरे कोशिश कर के तो देखो। मिट्टी का ही तो गमला है।” चमेली ने समझाया।
“ठीक है, मैं पूरी कोशिश करूँगा।” गुलाब ने कहा।
उसने सारी ताकत जड़ों में लगा दिया। कुछ ही दिनों में गमले के दो टुकड़े हो गये।
शाम को माली फूलों में पानी देने आया तो गमले को टूटा हुआ देखकर फौरन गुलाब को उठाया और क्यारी में जाकर लगा दिया।
कुछ ही दिनों में गुलाब पर फिर से हरियाली छा गयी। फूलों से वह लद गया। वह खुशी से झूम रहा था।
“धन्यवाद! चमेली बहन, तुम्हारी वजह से मुझे आज राहत महसूस हो रही है।” गुलाब ने कृतज्ञता व्यक्त किया।
“अरे ! धन्यवाद कैसा? दुःखियों की मदद करना तो हमारा फर्ज है और फिर तुम तो मेरे मित्र भी हो।” चमेली ने मुस्कुराते हुए कहा।
गुलाब का चेहरा भी खिल उठा।
©️रानी सिंह
पूर्णियाँ, बिहार