आजादी का दीवाना था
था गजब फौलादी वह आजादी का परवाना था
आजाद रहा न झुका कभी आजादी का दीवाना था।
ब्राह्मण कुल में जन्मा पर वह वनवासी संग रहता था
उन मित्रों संग खेल खेल में धनुष चलाना सिखता था।
चंद्रशेखर था नाम उसका पहना बसंती चोला था
15 कोड़े खाकर उसने बिगुल अपना खोला था।
फिरंगियों को खदेड़ भगाना ही तो उसने ठाना था
अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों ने उसके लोहे को माना था।
जलियांवाला बाग देख कर उसने भृकुटी तानी थी
भारत को आजाद कराने की मन में अब ठानी थी।
लाला जी की हत्या का बदला ले गोरों को तोला था।
बिस्मिल के संग काकोरी कर क्रांति का मुख मोड़ा था।
वीरभद्र नामक देशद्रोही ने दिया बड़ा ही धोखा था
देकर आजाद की सूचना दिया गोरों को मौका था।
अल्फ्रेड पार्क में फिरंगियों ने आजाद को घेरा था
खूब लड़ा वह कितने ही गोरे मौत के घाट उतारा था।
अंत में गोली एक बची नहीं फिरंगियों के हाथ आना था
स्वयं चला गोली अपने हाथ वह वीरगति को पाया था।
आजाद रहा ना झुका कभी आजादी का दीवाना था।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’