आजाओ प्रिय अब तो आओ
आजाओ प्रिय अब तो आओ…
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आज बिरह में डूब गया हूँ
इस जग से मैं उब गया हूँ
तेरे बिन है यह जग सुना
सोच सोच कर टूट गया हूँ
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आसाओं में तुम बस जाओ
मेरे सपनों में तुम आओ
तेरे बिन मेरी सुनी दिवाली
आकर मन में दीप जलाओ।
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मेरे हृदय की हो तुम मूरत
कैसे बीसारुं तेरी सूरत
तेरे बिन है जीवन सुना
जैसे मैं मिट्टी की मूरत।
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मेरे मन की हो तुम रानी
इस हृदय की तुम पटरानी
तेरे बिन इस हृदय भवन की
किसे बनाऊं मैं महारानी।
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आजाओ प्रिये अब आ जाओ
आकर गल माला बन जाओ
सुने मन के इस उपवन में
आकर प्रित का पुष्प खिलाओ।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”