आज़ाद
तुम्हारी जुल्म की आँधी
न मुझको सहने दो,
बहुत सुन लिया मैंने तुमको,
आज मुझको कहने दो ।
मैं उड़ता परिंदा हूं,
मुझे आजाद रहने दो।
आधी उम्र बीती
तुम्हारे पिंजरे में कैद रहकर,
आज उसे खोल कर,
मुझे हवाओं में बहने दो।
मैं उड़ता परिंदा हूं,
मुझे आजाद रहने दो।
तड़पती मेरी आंखें हैं,
मेरी आजादी को देखने के लिए,
अब तलक कैद रखा है
दुनिया की बातों में,
दुनिया के रिवाजों में,
दुनिया के हाथों में मैंने,
अब मुझे खुद से कहने दो,
मैं उड़ता परिंदा हूं,
मैं आजाद हूं,
मुझे आजाद ही रहने दो।
इस्माईल खान मेवाती