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26 Jul 2020 · 5 min read

आज़ादी के बाद महिलाओं की स्थिति

आज़ादी के बाद महिलाओं की स्थिति
//दिनेश एल० “जैहिंद”

पृथ्वी पर रह रहे सभी जीवधारियों की अपनी-अपनी जन्म गाथा है ! क्या थलचर हो, क्या जलचर हो, क्या नभचर हो, क्या उभयचर हो या क्या सरीसृप हो !
हम भी एक जीवधारी हैं, पर और सभी जीवधारियों से हम भिन्न हैं ! इसका मूलचूल कारण भी है ! अत: हम मानव हैं व मानव जाति के हैं !
जैसा कि विदित है कि एकाध अपवाद छोड़कर सभी जीवधारियों में धरती पर नर-मादा पाये जाते हैं ! अत: हमारी मानव जाति में भी पुरूष व महिला दो जातियाँ पायी जाती हैं !
आज मैं यहाँ महिला जाति के विकास व उत्थान की चर्चा करूँगा !
चाहे सृष्टि का हो या पृथ्वी का हो या पृथ्वी पर रह रहे सारे जीवधारियों का हो, विकास सभी का क्रमश: व उत्तरोत्तर होता रहा है !
इतिहास गवाह है कि हम मानव का भी विकास क्रमशः होता रहा है ! और यह क्रम निरंतर चलता रहा है !

कहा भी गया है —
“ये बस्ती है, ये बसते-बसते बसती है !”

वक्त का पहिया जैसे सदा चलते रहता है वैसे ही उन्नति व विकास का पहिया दौड़ते रहता है ! यह अक्षरश: सत्य है !
अत: मैं सौ फीसदी कह सकता हूँ कि जैसे पूरी मानव जाति का उत्तरोत्तर विकास हुआ है व उनकी स्थिति में सुधार हुआ है वैसे ही महिलाओं व उनकी स्थिति में निरंतर विकास, उन्नति व सुधार हुआ है ! और मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि यह क्रम देश की आज़ादी के बाद बेहतरीन व तीव्र गति से हुआ है ! और इसी का नतीजा है कि आज हमारे परिवार व समाज में पीढ़ी-दर-पीढ़ी का अंतर दृष्टि गोचर हो रहा है ! जिसके कारण हमारे बड़े बुजुर्ग व माता-पिता अपनी ही संतानों से उपेक्षित हैं व उनके बीच में उपहास के पात्र बने हुए हैं !

मैं प्रदत्त विषय से विलग नहीं होना चाहता हूँ ! अत: कहना चाहूँगा कि महिलाओं की स्थिति में आज़ादी के बाद आशातीत व असीमित परिवर्तन आया है ! साठ-सत्तर या सत्तर-अस्सी के दशक की बात करूँ तो उच्च जाति व सवर्ण परिवारों की महिलाओं को छोड़कर कहीं भी व किसी भी जाति में शिक्षित महिलाएँ मिलनी तो दूर, एक साक्षर महिला तक नहीं मिलती थी ! परिवार की महिला सदस्य पुरूष के बराबरी में मीलो दूर थी ! उनका स्वाभिमान, उनके विचार, उनकी सोच व उनकी इच्छा का कोई मायने नहीं था ! वे आर्थिक, मानसिक व शारीरिक रूप से अपने घर-परिवार के पुरुष वर्ग पर आश्रित थीं ! वे स्वतंत्रता व ऐच्छिकता से कोसों दूर थीं ! उनकी राय, सोच, सहमति व विचार पुरुषों के आगे पंगु थे ! समाज व परिवार में वे गूंगी बनकर अपना जीवन ढो रही थीं ! कहीं-कहीं बिन कुछ कहे बंधुआ मजदूरों के समान घर-परिवार व खेत- खलिहानों में बैलों के समान जुती हुई थीं ! पुरूषों के आगे उनका कोई अख्त़ियार व ज़ोर नहीं था !

समाज में एक शब्द बोलना उनके लिए जुल्म था, सभा में सिर उठाना उनके लिए पाप था और घर-परिवार में घुँघट उठाने और “हाँ-ना” की इज़ाज़त नहीं थी !

ऐसी ही विकट परिस्थितियों में भारत की महिलाएँ अपनी ज़िंदगी बसर करती रही थीं ! यह वह समय था जब परिवार का प्रधान पुरुष ही हुआ करता था ! किन्तु बीसवीं सदी के जाते-जाते और इक्कीसवीं सदी के आते-आते बहुत कुछ बदल गया ! महिलाओं की सोच, उनके विचार, मन:स्थिति, शारीरिक क्षमता, मनो-कामनाएँ, महत्त्वाकांक्षाएँ व सभी कुछ पुरुषों से आगे निकल गए !

“जहाँ उत्तम सोच है वहीं उन्नत स्थिति है !”

इसी कारण आज महिलाओं के लिए परिस्थितियाँ पूरी तरह से बदल गई हैं ! उनमें आश्चर्य जनक व अत्यधिक परिवर्तन आया है ! भारत सरकार की सोच बदली है ! राज्य सरकारों की भी सोच बदली ! आर्थिक मज़बूती व आत्मनिर्भरता हेतु सरकारी विधि-विधान व सामाजिक-आर्थिक योजनाओं को लागू करके वर्तमान सरकारें उनकी प्रगति व उत्थान में सहयोग कर रही है और उन्हें मज़बूत व विकसित करने हेतु वचनबद्ध हैं !
इस पुरुष प्रधान समाज ने भी अपना सोचने का नजरिया बदला है और उनकी हर संभव मदद कर रहा है, उनकी प्रगति से आनंदित है ! परिणामस्वरूप महिलाओं के उत्थान व विकास की धीरे-धीरे ही सही मगर नयी राहें खुलने लगीं हैं और वे भी जी-जान लगाकर मैदान में कूद पड़ीं हैं ! अब तो सब कुछ बदलने लगा ! और कुछ ऐसा बदला कि कहा नहीं जा सकता है !

“एक दुल्हा भी सोचता है कि मुझे अनपढ़ दुल्हनिया नहीं चाहिए !”

भले वह कम पढ़ा-लिखा क्यों न हो !

एक निजी संस्थान भी सोचती है कि उसे स्मार्ट, गुडलूकिंग, हाई क्वालिफ़ाइड महिला स्टाफ़ चाहिए ! सरकारी संस्थान भी अब यह सोचने लगी है कि उसे महिला कार्यकर्ता, महिला कर्मचारी व महिला अफ़िसर्स तेज़तर्रार चाहिए !

कहने का तात्पर्य यह है कि कार्य करने की कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ महिलाएँ कार्यरत नहीं हैं ! और कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ महिलाओं ने अपने कदम नहीं रखे हैं !
आज महिलाएं पुरूषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं ! और कहीं-कहीं तो पुरुषों को पछाड़ कर आगे निकल रही हैं !
फ़िल्म जगत, क्रीड़ा जगत, व्यापार जगत, चिकित्सा जगत, राजनैतिक क्षेत्र, शिक्षा जगत, साहित्य जगत, फ़ोर्स विभाग, नेवी, आर्मी, पायलट, ड्राइवर, संपादक, अनाउसर, न्यूज़ रीडर, न्यूज़ एंकर, रिपोर्टर, बेस्ट स्टूडेंट्स, फोटोग्राफर आदि तमाम बड़े-बड़े पदों व ओहदों को अपनी कार्य कुशलता से संचालित व सम्पादित कर रही हैं !

“पर इतना सब कुछ होने के बावजूद भी आज नारियों का चारित्रिक पतन हुआ है या वे खुद अपनी चारित्रिक पतन होने देना चाहती है या वे खुद अपने चरित्र का कोई वजूद नहीं मानती हैं !”

“इस बाबत वही खुद एकजुट होकर आपस में राय-मशविरा व विचार-विमर्श कर सकती हैं ! जब वे खुद विचारवान हैं तो वे खुद परिवार, समाज व देश की भलाई के बारे में सोच सकती है !”

आज़ादी के बाद अर्थात देश आज़ाद है, हम सब आज़ाद हैं ! फिर महिलाएं भी आज़ाद हैं ! पर ये आज़ादी आज़ादी नहीं है ! जहाँ तन की, भोजन की, पोशाक की, शिक्षा की, कार्य की व बोलने की आज़ादी हो, मगर मन की आज़ादी न हो वह आज़ादी नहीं है !
सच्ची आज़ादी मन की उड़ान होती है ! जब मन की आज़ादी हमारे आज की बच्चियों, युवतियों व महिलाओं को मिल जाय तो वे बीहड़ में भी सुपथ का निर्माण कर सकती हैं !

आज की महिलाओं पर भारत, भारत सरकार, व हम पुरुषों को गर्व है !
आज हम उनकी तरफ़ से बेफ़िक्र हैं कि वे आज के भारत की नारी हैं और वह स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भर हैं !

अत: जब महिलाओं को लेकर भारत व भारत सरकार की ऐसी सोच या ऐसी विचार-धारा बन जाती है। तब भारत सरकार
से आपका यह पूछने का हक़ बनता है कि आपकी कीमत पुरुषों के बराबर कम क्यों आँकी जाती है ?
“एक काम एक दाम” के तर्ज पर आपका भी हक़ बनता है कि जो वेतनमान पुरूष वर्ग के लिए निर्धारित की गई है वही वेतनमान आप सबों के लिए भी निर्धारित किया जाना चाहिए !
चाहे निजी संस्थान हो या सरकारी ?

कुल मिलाकर मैं यहाँ यही कहना चाहूँगा कि आज़ादी के बाद महिलाओं की स्थिति में तीव्र गति से आश्चर्य जनक परिवर्तन हुआ है ! और वे सभी आज अच्छी स्थिति में हैं ! मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि वे दिन-दूनी व रात-चौगुनी तरक्की के पथ पर अग्रसर होती रहें !

=============
दिनेश एल०” जैहिंद”
10/06/2020

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 376 Views
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