आजकल
रिश्ते को संजोकर रख लिए है आजकल
परिवार में वैसे कुछ फासले हैं आजकल
आदमी से आदमी का अब कोई बंधन न टूटे
बाँटते फिर रहें हैं प्यार फिर हम आजकल
अकेला आदमी कैसे अपने घर को जाए
बिन वृक्ष के भला वो कैसे छाँव पाए
स्वर्ग की चाहत लिए ग़र निकल पड़ा है
मुमकिन है के पहले वो अपने गाँव जाए
-सिद्धार्थ गोरखपुरी