Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Aug 2024 · 4 min read

आचार्य पंडित राम चन्द्र शुक्ल

जीवनी-
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म 1884 उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद के अगोना नामक गाँव मे हुआ था माता विभाषी और पिता चंदवली शुक्ल थे ।
आचार्य पण्डित रामचंद्र शुक्ल के पिता पण्डित चन्द्रवली शुक्ल कि नियुक्ति सदर कानूगो पद पर जनपद मिर्जापुर में थी अतः सारा परिवार मिर्जापुर ही रहता था।
पण्डित रामचन्द्र शुक्ल की माता जी का देहावसान मात्र नौ वर्ष में ही हो गया मातृसुख का अभाव और विमाता कि प्रताड़ना आचार्य पण्डित रामचंद्र शुक्ल को बचपन मे ही परिपक्व बना दिया ।
मिर्जापुर लंदन स्कूल से 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण किया पिता कि इच्छा थी कि बेटा कचहरी जाकर दफ्तर काम सीखे किंतु शुक्ल जी को उच्च शिक्षा कि ललक थी अतः पिता ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए इलाहाबाद भेज दिया जबकि शुक्ल जी कि रुचि वकालत में विल्कुल नही थी उनकी रुचि साहित्य में थी परिणाम यह हुआ की शुक्ल जी वकालत कि परीक्षा उत्तीर्ण ही नही कर सके पुनः पिता ने उन्हें तहसीलदार का पद दिलाने का प्रयास किया किंतु स्वाभिमानी प्रवृत्ति के शुक्ल जी को रास नही आया ।

आचार्य पण्डित रामचंद्र शुक्ल जी ने 1903 से 1905 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे इसी दौरान उनके लेख पत्र पत्रिकाओं में छपने लगे धीरे धीरे उनकी विद्वता का प्रकाश चारो तरफ फैल गया उनकी योग्यता से प्रभावित होकर 1908 में काशी नगरी प्रचारणी शभा ने उन्हें हिंदी शब्द सागर के सहायक सम्पादक का कार्य भार सौंपा जिसे उन्होंने बड़ी जिम्मेदारी से निभाया श्याम सुंदर दास के शब्दों में( शब्द सागर कि उपयोगिता सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय राम चन्द्र शुक्ल को प्राप्त है) ।1919 में काशी हिंदू विश्विद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए जहाँ श्याम सुंदर दास कि मृत्यु के बाद से 1937 से 1941 तक विभागाध्यक्ष रहे 2 फरवरी -1941 को हृदय गति रुकने से शुक्ल जी कि मृत्यु हुई।
आचार्य पण्डित रामचन्द्र शुक्ल जी कि कृतियों को मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है ।
1- आलोचनात्मक ग्रंथ—

सुर ,तुलसी # बनादास जायसी पर शुक्ल जी द्वारा कि गई आलोचनाए रहस्यवाद, काव्य मे
अभिव्यंजनावाद ,रस मीमांसा आदि शुक्ल जी कि आलोचनात्मक रचनाएं है।

निबंधात्मक ग्रंथ—

शुक्ल जी के निबन्द चिंतामणी नामक ग्रंथ के दो भागों में संग्रहित है ।चिंतामणि के निबंधों के अतिरिक्त भी शुक्ल जी के कुछ निबंध है जिसमे मित्रता ,अध्ययन, आदि निबंध सामान्य विषयो पर लिखे गए निबंध है
मित्रता निबंध जीवनोपयोगी विषय पर लिखा गया है जो उच्चकोटि के निबंध है जिसमे शुक्ल जी के लेखन कि विशिष्ट शैली स्प्ष्ट परिलक्षित होती है।

ऐतिहासिक ग्रंथ-

हिंदी साहित्य का इतिहास उनकी अनूठी कृति है जो एक ऐतिहासिक ग्रंथ है जिसमे हिंदी साहित्य के आदि से निरंतरता का अन्वेषी लेखन है।

अनुदित कृतियाँ–

महात्मा बना दास 19 सदी में उत्तर भारत के प्रसिद्ध सन्त एव कवि थे उनके द्वारा लिखे गए 64 ग्रंथ है ।बनादास जी का जन्म गोंडा जिले के अशोकपुर ग्राम सभा मे हुआ था जन्म भूमि पर ब्रह्मर्षि बाबा देवरहवा जी द्वारा बनादास जी कि मूर्ति का अनावरण किया गया पुत्र शोक में घर परिवार छोड़कर 14 वर्ष कि अयोध्या में कठिन तपस्या के बाद भगवान राम के साक्षात्कार हुआ तदुपरांत बना दास ने 64 ग्रंथो कि रचना कि ।
उभय प्रबोधक रामायण उसमें मुख्य है
सम्पादित कृतियाँ—
सम्पादित ग्रंथो में हिंदी शब्द सागर ,नागरीप्रचारिणी पत्रिका,भ्रमर गीत सार ,सुर ,तुलसी जायसी ग्रंथावली उल्लेखनीय है।
भाषा
शुक्ल जी के गद्य कि भाषा खड़ी बोली है जिसके दो रूप है-

क्लिष्ट एव जटिल— गम्भीर विषयो के वर्णन एव आलोचनात्मक निबंधों में भाषा का क्लिष्ट रूप मिलता है विषय कि गम्भीरता के कारण ऐसा होना स्वाभाविक भी है।

सरल एव व्यवहारिक-

भाषा का सरल एव व्यहारिक प्रयोग शुक्ल जी ने अपने निबंधों में बाखूबी किया है जिसमे हिंदी के प्रचलित शब्दो का अधिक प्रयोग है आवश्यकतानुसार उर्दू एव अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रचलित प्रयोग किया गया है शुक्ल जी द्वारा इसके अलावा तड़क भड़क अटकल पच्चू आदि ग्रमीण शब्दो को भी अपनाया है शुक्ल जी ने।

शैली–
शुक्ल जी कि शैली को निम्न वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

1- आलोचनात्मक शैली–

शुक्ल जी ने अपने आलोचनात्मक निबंध इसी शैली में लिखे है भाषा गम्भीर जिसमे संस्कृत एव तत्सम शब्दो कि है वाक्य छोटे छोटे संयत एव मार्मिक है।

2-भावात्मक शैली—

शुक्ल जी के मनोबैज्ञानिक निबंध भावनात्मक शैली में लिखे गए है यह शैली गद्य काव्य कि तरह है इस शैली में भाषा सरल एव व्यवहारिक है भावो के अनुसार छोटे बड़े दोनों शब्द अपनाए गए है।

3-गवेषणात्मक शैली—-

इस शैली में शुक्ल जी के नवीन खोजपूर्ण निबंधों कि रचना कि आलोचना है आलोचनात्म शैली कि अपेक्षा यह शैली गम्भीर एव दुरूह है इसमें भाषा क्लिष्ट है वाक्य बड़े बड़े और मुहावरों का नितांत अभाव है।।

विराट व्यक्तित्व–
आचार्य पण्डित रामचन्द शुक्ल के जीवन मे कभी तंगी अभाव नही रही लेकिन कहावत है ईश्वर प्रत्येक जीवन को किसी न किसी विषम परिस्थिति में अवश्य रखता है यह सत्य आचार्य पण्डित राम चन्द्र शुक्ल जी के भी जीवन मे सत्य था ।माता कि मृत्यु मात्र नौ वर्ष कि अवस्था मे और विमाता का व्यव्हार एव पिता द्वारा पुत्र एव विमाता के रिश्तो के मध्य द्वंद में कभी अतिरेक भावविभोर तो कभी निःशब्द स्वंय के दोषी होने की अनुभूति के पारिवारिक वातावरण ने आचार्य पण्डित रामचंद्र शुक्ल को अंतर्मुखी विद्रोही प्रवृत्ति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जिसके कारण उन्होंने पिता द्वारा वकालत पढने एव तहसीलदार पद दिनाने कि मंशा के प्रति विद्रोही एव स्वतंत्र मानसिकता ने पण्डित जी को हिंदी साहित्य के चिंतन का भगीरथ बना दिया जो पण्डित जी कि कृतियों में स्प्ष्ट प्रतिबिंबित होती है ।
चाहे वह आलोचना हो निबंध हो ऐतिहासिक या अनुदुतित सभी विधाओं में पण्डित जी के भांवो पर उनकी स्पष्टता के चिंतित स्व की पहचान कि ऊर्जा से ओत प्रोत है
पण्डित राम चन्द्र शुक्ल कभी कभार ही जन्म लेते है जो अपनी कृतियों से समय काल को एक नई ऊंचाई पहचान प्रदान करते है।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

Language: Hindi
Tag: लेख
68 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
View all
You may also like:
" शौक "
Dr. Kishan tandon kranti
सब खो गए इधर-उधर अपनी तलाश में
सब खो गए इधर-उधर अपनी तलाश में
Shweta Soni
मोहब्बत में जीत कहां मिलती है,
मोहब्बत में जीत कहां मिलती है,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
कठिन परिश्रम कर फल के इंतजार में बैठ
कठिन परिश्रम कर फल के इंतजार में बैठ
Krishna Manshi
रूह की अभिलाषा🙏
रूह की अभिलाषा🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दोहा पंचक. . . नैन
दोहा पंचक. . . नैन
sushil sarna
राजनीति
राजनीति
Bodhisatva kastooriya
ফুলডুংরি পাহাড় ভ্রমণ
ফুলডুংরি পাহাড় ভ্রমণ
Arghyadeep Chakraborty
संकल्प
संकल्प
Vedha Singh
*रामपुर रियासत के अंतिम राज-ज्योतिषी एवं मुख्य पुरोहित पंडित
*रामपुर रियासत के अंतिम राज-ज्योतिषी एवं मुख्य पुरोहित पंडित
Ravi Prakash
दर्पण
दर्पण
Kanchan verma
संस्कारी लड़की
संस्कारी लड़की
Dr.Priya Soni Khare
Only attraction
Only attraction
Bidyadhar Mantry
#काव्यमय_शुभकामना
#काव्यमय_शुभकामना
*प्रणय*
न मुझको दग़ा देना
न मुझको दग़ा देना
Monika Arora
तुम्हारी आँखें कमाल आँखें
तुम्हारी आँखें कमाल आँखें
Anis Shah
जय श्री राम
जय श्री राम
आर.एस. 'प्रीतम'
उसकी मर्ज़ी पे सर झुका लेना ,
उसकी मर्ज़ी पे सर झुका लेना ,
Dr fauzia Naseem shad
राम छोड़ ना कोई हमारे..
राम छोड़ ना कोई हमारे..
Vijay kumar Pandey
3055.*पूर्णिका*
3055.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Bundeli Doha-Anmane
Bundeli Doha-Anmane
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
पटकथा
पटकथा
Mahender Singh
संवेदना
संवेदना
Ekta chitrangini
"तुम कब तक मुझे चाहोगे"
Ajit Kumar "Karn"
खाटू वाले मेरे श्याम भजन अरविंद भारद्वाज
खाटू वाले मेरे श्याम भजन अरविंद भारद्वाज
अरविंद भारद्वाज
‘1857 के विद्रोह’ की नायिका रानी लक्ष्मीबाई
‘1857 के विद्रोह’ की नायिका रानी लक्ष्मीबाई
कवि रमेशराज
!!! होली आई है !!!
!!! होली आई है !!!
जगदीश लववंशी
कभी फुरसत मिले तो पिण्डवाड़ा तुम आवो
कभी फुरसत मिले तो पिण्डवाड़ा तुम आवो
gurudeenverma198
कड़वा बोलने वालो से सहद नहीं बिकता
कड़वा बोलने वालो से सहद नहीं बिकता
Ranjeet kumar patre
ग्यारह होना
ग्यारह होना
Pankaj Bindas
Loading...