आचार्यवर आर्यभट्ट
ग्रह नक्षत्र सूत्र समेकन नदियों का कल कल निनाद ,
गणित सार ज्योतिष रहस्य करता सदैव हे आर्यभट्ट याद !
है सत्य धरा को तूने शुन्य परिचय ज्ञान दिया ,
सागर की गहराई से अंतरिक्ष ऊंचाई का मान दिया ।
पृथ्वी मान परिक्रमा परिधि को दिखलाया तूने विचित्र , आर्यभट्टीयम रचना अमोघ को कैसे दिया साध सुचित्र ।
राष्ट्र गुरु नहीं विश्वगुरु हो , हो भारत की अमर वाणी ;
युग युग से कीर्ति रहे अमर , हे सुसंस्कृत सभ्यता के प्राणी ।
ग्रह का ज्ञान स्पष्ट परिलक्षित , पाई को तूने साध दिया ,
खगोल अन्वेषण संधानों से पूरे भूगोल को बांध दिया ।
समस्त भूमण्डल को कर प्रकाशित , किया मेधा शक्ति संपन्न ,
टुकड़े-टुकड़े लुटेरों तंत्र ने आज , हाय ! विघटित कर किया विपन्न ।
दूरदर्शिता विश्व सभ्यता के रक्षक पुन: आओ हे भारत वीर ;
कटुता-विक्षोभ, विघटन मिटाने लाना अतीव सूत्र गंभीर !
हे विप्रश्रेष्ठ ! शत बार नमन ।
अनंत अपार प्रणमन् वंदन !
✍? आलोक पाण्डेय
वाराणसी,भारतभूमि