आघाती पैबंद लगे हैं …….
नव गीत ……
आघाती पैबंद लगे हैं …
बहुत उधेडा जीवन अपना
आघाती पेबंद लगे हैं ….
जो अपने थे हुए पराये
दूरी के अनुबंध लगे हैं ….
अपनों ने ही पत्थर मारे
शीशे टूटे दिल के मेरे
कौन सुने व्यथायें मन की
रह गए सारे कथन अधूरे
बहुत बचाया सन्नाटों से
खामोशी के टाट लगे हैं ….
बहुत उधेडा जीवन अपना
आघाती पेबंद लगे हैं ….
छिड़का जहाँ मुशक से पानी
सड़कें अब भी वैसी ही हैं…..
सारा पानी उलीच दिया
गीली हैं पर धुली नहीं हैं
राजनीति के गलियारों में
आदेश मुहर बंद लगे हैं ….
बहुत उधेडा जीवन अपना
आघाती पेबंद लगे हैं ….
…..आभा