आग लगे मेरे जी को
आग लगे मेरे जी को
भूख से जी अकुलाता है
नमक – भात के बात पे
जनावर मुझ को बनता है।
आग लगे मेरे जी को
कुछ अब न सुहाता है
बेद कुरान की बातों से
दिल मेरा खूब झल्लाता है
आग लगे मेरे जी को
भजन, अजान भी जुमला लगता है
राम रहीम कहां मुझ को
दो कोर भात खिला कर जाता है
आग लगे मेरे जी को
रजिया राधा में मुझको
अपना आप झलकता है
दिल का दर्द बहे कहीं भी
आंख मेरी नम कर जाता है
आग लगे मेरे जी को
पनघट मरघट सा दिखता है
कब्रिस्तान समसान में ही अब
अपना घर मुझ को दिखता है
आग लगे मेरे जी को
सच का मुंह बेढंगा दिखता है
चांद उतरे जो नील गगन से
आंगन में मेरे वो भी बदरंगा है
आग लगे मेरे जी को
राम और रावण दिखे एक जैसा
एक ने छल से नार हरी
एक के छल से जंगल बिच आन खड़ी
एक ने साधु वेश धरा
एक ने मर्यादा का स्वांग भरा
~ सिद्धार्थ