आग लगाकर हाथ सेंकते,उन लोगों से दूर रहो
कविता लोक गीतिका समारोह- 364,
दिनांक-१८/६/२०२२
आधार- लावणी(चौपाई+मानव छन्द) मापनीमुक्त मात्रिक
विधान -30 मात्रा ,16 ,14 पर यति ,अंत में वाचिक गा
समान्त-ओं, पदान्त-से दूर रहो
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आग लगाकर हाथ सेंकते, उन लोगों से दूर रहो।
जो खुद को ही खाक बना दें,उन शोलों से दूर रहो।।(१)
ये दीमक है तुम्हें शनै:ही,अपना ग्रास बना लेगी,
पहनें श्वेत वस्त्र का चोला ,उन चोलों से दूर रहो।(२)
जिनकी बोली में मीठापन,अंदर जहर भरा तीखा,
पहचानो उनकी भाषा को,बड़-बोलों से दूर रहो।(३)
हर चौराहे गली मुहल्ले, करें खोखली हमदर्दी,
वक्त पड़े पर काम न आयें,उन खोकों से दूर रहो।(४)
अटल कहै यह हाथ जोड़कर,सुनो ऐ अग्नि-वीरों अब,
मत ना पड़ो वबालों में तुम, बहकावों से दूर रहो।।(५)
🙏💐🙏
अटल मुरादाबादी
९६५०२९११०८