आग जो रूह को जलाती है…
आग जो रूह को जलाती है,
कम्बख़त हुस्न से ही’ आती है।
आज महफ़िल बता रही हमको,
क्यों ये’ शम्मा जलाई’ जाती है।
मय बड़ी चीज़ है कहो कैसे,
सब ग़मों को यही भुलाती है।
ठोकरों में पड़ा रहा यारों,
ठोकरें क्या नहीं सिखाती हैं।
रात भर क्यों न सो सका पंकज,
शायद खुदा की’ याद आती है।।