**आगोश मे तेरे हम चहक गए**
**आगोश मे तेरे हम चहक गए**
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यूँ होश मे आ कर भी बहक गए,
आगोश मे तेरे हम चहक गए।
जालिम जगत ने तो है रुला दिया,
तेरे नशे में कब के हम महक गए।
जैसे पतंगा सुलगाए लपट सदा,
हम भी शमा बन कर है दहक गए।
ये बांवरा मन पथ पर भटक रहा,
बन आग हम झट से लहक गए।
है घूमता मनसीरत यहाँ – वहाँ,
यूँ छोड़कर वापिस हम न हक गए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)