आगे हमेशा बढ़ें हम
गीतिका
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यहाँ बेवजह क्यों किसी से डरें हम।
बिना खौफ आगे हमेशा बढ़ें हम।
खिले फूल महके सुहानी फिजा है,
चलो जिन्दगी से मुहब्बत करें हम।
सुहानी डगर है मगर शूल भी हैं,
जरा सा सँभल ले कदम फिर धरें हम।
बहुत दूर मंजिल न होती कभी है,
विजय भाव के साथ बढ़ते चलें हम।
चमकने लगी आसमाँ में बिजलियाँ,
चलो आज तूफान से मिल चलें हम।
मुहब्बत नई है उड़े जा रहे हैं,
नजारे यही देख खुश हो रहें हम।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य