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11 Mar 2020 · 1 min read

आगाज़ होली का

होली का आगाज़ चलो न चलते हैं
रंगों ने दी आवाज़ चलो न चलते हैं
बैर शत्रुता भेदभाव सबको दें भुला
हर चेहरे पर प्रेम का रंग हम मलते हैं।।

कटे हुए पंखों संग जो ये बैठे हैं
बन उसके परवाज़ चलो न चलते हैं
बैर शत्रुता भेदभाव सबको दें भुला
हर चेहरे पर प्रेम का रंग हम मलते हैं।।

कभी खफ़ा होकर रूठा जो हो हमसे
मना उसे लो आज चलो न चलते हैं
बैर शत्रुता भेदभाव सबको दें भुला
हर चेहरे पर प्रेम का रंग हम मलते हैं।।

तपती धूप में छांव अंधेरे में दीपक
लेकर यह अंदाज़ चलो न चलते हैं
बैर शत्रुता भेदभाव सबको दें भुला
हर चेहरे पर प्रेम का रंग हम मलते हैं।।

झिड़क रही जिन्हें दुनिया हमें कहना है
उनसे मधुर अल्फाज़ चलो न चलते हैं
बैर शत्रुता भेदभाव सबको दें भुला
हर चेहरे पर प्रेम का रंग हम मलते हैं।।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 238 Views
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