आगमन
एकाकी से जब जर्जर हो गया था जीवन,
और अवसाद से लबालब भर गया था ये मन
दूर तलक भी न थी जब आहट किसी की,
तब उस निर्जर मन में तुम ऐसे आए,
सूखे जड़ में जैसे नव किसलय हो आए।
सपनों के लाश से बोझिल हो गए थे नयन,
धधक रही थी ज्वाला, जल रहा था चित्तवन,
राख से जब एक क्षण मात्र की दूरी थी,
बनकर बारिश तब तुम ऐसे आए,
स्वाति ने जैसे अपनी बूंदें सीप पर बरसाये।।
-©®शिखा