आगमन उस परलोक से भी
आगमन उस परलोक से भी
कहते हैं जहाँ रहती है मुक्ति
आती है वापस अपनो से मिलने
चाहत संजोये
कैसा है बाग कैसे हैं पौधे
विरासत की भोर पल्लवित चहुंओर
कैसा है आज कैसे हैं अपने
बरगद हैं आखिर पुर्वज हमारे
न होकर भी आशीष संभाले
आये हैं देखो अमावस में द्वारे
“पितृ”
©️ दामिनी नारायण सिंह