*आखिर वो आई है घड़ी*
आखिर वो आई है घड़ी
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आखिर वो आई है घड़ी,
नजरें जा उनसे ही लड़ी।
यौवन मदहोशी सा भरा,
हीरे नीरज से वो जड़ी।
क्या सिफ़तें सारी यूँ करूँ,
हलकी बूंदो की हो झड़ी।
जब से देखा सुध खो गई,
पतली कनकौआ सी छड़ी।
देखूँ उनको रहूँ देखता,
सांसे ग्रीवा मे आ अड़ी।
चहका महका है तनबदन,
कदमो मे है दुनिया पड़ी।
मनसीरत दीवाना हुआ,
जीवन की राहें हैँ बड़ी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)