आखिर छोड़ दिया साथ
आखिर छोड़ ही दिया ना!
अधर बीच में मेरा साथ
याद है ना वो किया वादा
रखकर सिर पर हाथ
लेकर हाथों में मेरा नर्म हाथ
पूर्ण विस्वास होश हवास में कहा था
मै हूँ ना ! क्यों करती हो चिंता
दूँगा तेरा ताउम्र भर साथ
मत हो मेरी जान उदास
आखिर तुम भी आम इंसान निकले
भरकर वासना का घूँट हो फरार निकले
घोट दिया दामन ना मेरी खुशियों का
विस्वासघाती कर आत्म आघात
चकनाचूर कर दिया मेरा विस्वास
बीच मंझदार छोड़ दिया साथ
पीछे मुडकर एक बार भी नहीं देखा
क्या है मुझ कर्मो मारी का हाल
बद से बदत्तर हुआ हाल बेहाल
अब याद आते हैं मेरी माँ के बोल
जो उस वक्त थे बहुत अनमोल
पर प्रेमवशीभूत हो नहीं दिया मैने मोल
बड़े ही सरल स्पष्ट सटीक शब्दों में कहा था
यह आदमजात बड़ी एहसान फरमोश होती हैं
निकाल कर के अपना मतलब
कर के अपना उल्लू सीधा
पी कर यौवन का रस
नौ दो ग्यारह हो जाता है
लेकिन मै यह सुनने समझने को कहाँ तैयार थी
तेरे प्रेमवशीभूत हो ; हो गई लाचार थी
यथार्थ और कल्पना के भँवर में फँस गई थी
अब समझ गई हूँ वह सब अन्तर
पर अब क्या है बचा मेरे पास
सर्वस्व लुट गया यहाँ सब कुछ
लाज,हया ,ईमान, मान,सम्मान
पर मैं भी हूँ एक आखिर आम इंसान
नहीं सह सकती यह असहनीय मानवीय पीड़ा
कर दूँगी न्यौछावर यह अपवित्र मैली देह
प्रकति की गोद म़े ही सदा के लिए समर्पित
जिसने स्वयं कभी उपहार की थी सुंदर
आकर्षक पावन पवित्र देह
बिना किसी उम्मीद बिना किसी अंजाम के
सुखविंद्र सिंह मनसीरत