1) आखिर क्यों ?
पूरी जिंदगी हम भ्रम में गुजार देते हैं,
फिर भी भ्रम को भ्रम नहीं समझते हैं,
कभी अपना होने का हवाला देते हैं,
तो कभी जिम्मेदारी का भुलावा देते हैं,
वक्त के पहिए के साथ चलते जाते हैं,
अपने पराये के खातिर पिसते जाते हैं,
दुनियादारी निभाने में खपाते जाते हैं,
जिंदगी की उहापोह में बिताते जाते हैं,
समझ आता भी है तो सोच दबा देते हैं,
भ्रम का मतलब मोह माया बता देते हैं,
जिंदगी की रीत यही कहकर मिटा लेते हैं,
अपनी जिंदगी को खुद से ही सजा देते हैं,
भ्रमित रहना एक आदत सी बना लेते हैं,
हकीकत पर माया का पर्दा लगा लेते हैं,
और भ्रम के सहारे ही हम चला करते हैं,
आखिर क्यों हम इसे सही कहा करते हैं ?
पूनम झा ‘प्रथमा’
जयपुर, राजस्थान
Mob-Wats – 9414875654
Email – poonamjha14869@gmail.com