आखिर क्यों ?
क्यों किसी का दर्द मेरी अश्कों में पलने लगता है,
क्यों किसी का दर्द मेरे सीने में तड़पने लगता है।
क्यों लगता है मुझको जैसे सांसें मेरी कम सी है,
रुक रुक कर चलती हैं सांसें और धड़कन मद्धम सी है।
क्यों भीड़ में भी होना महसूस मुझे हो जाता है,
क्यों बिन देखे भी होने का एहसास मुझे छु जाता है।
क्यों तीसरे पहर को अचानक से बोझिल पलकें खुल जाती हैं,
मानो कोई मुझे खुद से जोड़ने की कोशिश करता है।
क्यों कड़वाहटों को पीकर भी दिल माफ सब कर जाता है,
है कौन सा बंधन जो मुझको जिंदगी के पास फिर फिर ले जाता है।
क्यों नहीं सब छोड़कर जिंदगी आगे बढ़ सी जाती है,
क्यों किसी मोड़ पर आकर दुनिया मेरी थमी सी है।