आखिर क्यों
आखिर क्यों
आज बुजुर्गों की वृद्ध आश्रम की समस्या अकल्पनीय है। वृद्धावस्था अभिशाप होती जा रही है। उनका जीवनयापन बहुत कठिन होता जा रहा है। कोई चलने में असमर्थ है तो कोई अपाहिज सदृश बिस्तर को ही अपनी नियति मानकर जीवन निर्वाह कर रहा है। यदि वे उच्चवर्गीय हैं तो उनकी संतान ने नर्स, अटेंडेंट या बहुत सारे पैसों की व्यवस्था कर दी है, ताकि उन लोगों का जीवन भौतिक सुख-सुविधा से परिपूर्ण हो। वृद्धाश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। अगर उनके दुखड़े सुनने बैठ जाओ तो पता चलता है कि संतानें उनके साथ क्या करती है ,कुछ दिन पहले ही मैं एक वृद्धाश्रम में कपड़े देने गई तो दिल पसीज उठा।लानत है ऐसी औलाद पर जो अपने माता पिता को वृद्ध आश्रम छोड़ आते है, किसी ने क्या खूब लिखा है-
हमने ये दुनिया सरायफानी देखी
हर चीज यहां आनी-जानी देखी
आके न जाए वो बुढ़ापा देखा
जाके न आए वो जवानी देखी।
ऐसे पैसे का क्या लाभ
बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल विषय पर बोलते हुए डा. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डा. गिरजाशंकर शर्मा ने युवा पीढ़ी के पलायन को बड़ी समस्या बताया। उन्होंने कहा कि बच्चे जब विदेश में स्थापित हो जाते हैं, तो उनका ध्यान सिर्फ पत्नी और बच्चों तक सीमित हो जाता है, जबकि माता-पिता यहां एकाकी जीवन जी रहे होते हैं। आज अगर हम आंकडे निकालकर देख लें तो विदेशों से अपने माता-पिता के लिए बच्चे जो पैसा भेजते हैं, वो करोड़ों में है, लेकिन इस पैसे का कोई इस्तेमाल बुजुर्गों के लिए नहीं है अगर बच्चे उनके पास नहीं है। देश के कई हिस्सों में तो इस पलायन की वजह से हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि बीमारी से लड़ते-लड़ते बुजुर्ग दुनिया छोड़ जाते हैं और उनके पार्थिव शरीर अपने बच्चों के वतन लौटने का इंतजार करते रहते हैं
वृद्धाश्रम किसलिए
वृद्धाश्रम इसलिए नहीं होने चाहिए कि बच्चे अपने मां-बाप को यहां छोड़ जाएं बल्कि ये इसलिए होने चाहिए ताकि जो लोग माता-पिता को साथ नहीं रखते, उन्हें यहां बुलाकर उनकी काउंसलिंग की जा सके। वास्तव में हम मानसिक रूप से अभी उतने तैयार नहीं हैं। हमारे संस्कार वो नहीं हैं कि हम माता-पिता से अलग होकर खुश रह सकें।भारत में वृद्ध आश्रम वृद्धों की समस्या का कोई स्थाई हल नहीं है। वृद्धों को तो परिवारों में ही स्थान मिलना चाहिए। जीवन की संध्या में जहां उन्हें प्यार-सम्मान की आवश्यकता है वहीं युवा पीढ़ी उनके अनुभवों का लाभ ले सकती है। मां-बाप व औलाद के रिश्तों को आज धन ही दीमक की तरह खा रहा है। आज के युग का धर्म धन ही है इसलिए वृद्ध अवस्था के लिए आर्थिक सुरक्षा बहुत आवश्यक हो गई है। जिन बच्चों ने मां-बाप की अनदेखी की है, वो भी याद रखे कि वृद्ध अवस्था उन पर भी आनी है। उनके बच्चे उनसे ऐसा व्यवहार न करें उसके बारे आज ही सोचना शुरू करें। वैसे हिन्दू मान्यता तो यही है कि जो आज करोगे वो ही कल को आपके सामने भी आएगा। सरकार व समाज दोनों को जीवन की संध्या कैसे सुखमय हो सकती है उस बारे सोच कर अवश्य ठोस कदम उठाने चाहिए।
आज के आधुनिक समाज में मैंने एक बुजुर्ग महिला से बात कर उनके बच्चों के बारे में जानने की कोशिश की तो……!
उन्होंने खुश होते हुए कहा.”मेरे चार बच्चे हैं चारों के चारों अपनी-अपनी जिन्दगी में बहुत खुश हैं एक को छोड़ बाकी सबकी शादी हो चुकी है सभी मेरा हाल खबर लेते रहते हैं.उन सबकी खबर पा मेरे दिल को काफी सुकून होता है”
मैंने उनसे पूछा वो सब क्या करते हैं?और कहां रहते हैं?
उन्होंने जवाब दिया.”वो सब क्या करते हैं ये तो मुझे नहीं पता.वो रहते कहां है वो मैं बता सकती हूं.”
उत्सुकतावश मैंने उनसे पूछ लिया कहां रहते हैं माता जी?
उन्होंने और खुश होते हुए कहा.”मेरी बड़ी बेटी जपान में अपने परिवार के साथ कुशल- मंगल से है और मेरी छोटी बेटी को विदेश जाने का बड़ा शौक था भगवान ने भी उसकी सुन ली इस वक्त वो अपने पति के साथ अमरीका में है.
मेरा बड़ा बेटा आस्ट्रेलिया में अपने परिवार के साथ सेटेल हो गया है.छोटे बेटे की अभी शादी नहीं हुई है वो इस वक्त कनाडा में जॉब करता है
उनकी बातों को बीच में काट मैंने कहा.”और आप इस वक्त कहां हैं पता है आपको”?
अपनी किस्मत को कोस आंखों में आंसू लिए उन्होंने कहा.”इस वक्त मैं वृद्ध -आश्रम में हूं.”
ये है आज का आधुनिक समाज ,मेरे बस में हो तो सारे वृद्ध आश्रम बंद करवा दू।मेरी आप सब से गुजारिश है अगर आप में से कोई ऐसा है तो जाए और अपने माता पिता को ले आए।
दीपाली कालरा नई दिल्ली