आखिर क्यों तू
आखिर क्यों तू ?
इतना निराश हो गया यूँ साथ उनका छूटने से।
इतना उदास हो गया यूँ उनके रुठ जाने से।।
तुमने तो बता दिया है जबकि,
उनको इतना अभिमानी, शराफत अपनी दिखाकर।
उनको इतना बेखबर, रहमत अपनी दिखाकर।।
आखिर क्यों तू ?
हो गया इतना तन्हा, रहकर अपनों के बीच।
हो गया इतना गुमनाम, जीकर अपने यारों के बीच।।
मालूम है जबकि तुमको,
तू कम नहीं है किसी भी तरह, अगर तू सोचे तो।
तू तो देता है तालीम दुनिया को, खास तू समझे तो।।
आखिर क्यों तू ?
बहा रहा है उनके लिए आँसू , जो नहीं समझते तुम्हारा दर्द।
बहा रहा है उनके लिए अपना खूं , जो रूह से है बहुत बेदर्द।।
तू समझता है जबकि,
अपने ही अपनों से नहीं वफ़ा, तो तुम्हारी क्या इज्जत करेंगे ?
मतलब का है यह प्रेम और रिश्ता, तुमसे क्या मतलब रखेंगे ?
तू लिखता है जबकि,
ऐ वतन तेरे लिए, तुमको मतलब है सिर्फ अपने मतलब से।
तू दोस्त है उनका, जो प्यार करते हैं सच्चा तुमसे।।
आखिर क्यों तू —————————– ?
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)