(आखिर कौन हूं मैं )
पढ़ सको तो पढ़ लेना खुली किताब हूं मैं
चुका सको तो चुका देना तेरे दिए गए दर्दों का उधार हूं मैं समझ सको तो समझ लेना कभी ना खत्म होने वाली एक उम्मीद हूं मैं
पहचान सको तो पहचान लेना बहती हुई नदी का ठहराव हूं मैं
समेट कर रख सको तो रख लेना जलते हुए लूह की आग हूं मैं
जान सको तो जान लेना आखिर क्यों आज भी अपनी मां के सर का ताज हूं मैं
बस कर ए जिंदगी और कितना परखेगी मुझे आखिर इंसान ही तो हूं मै