आखिर किसान हूँ
दबा कर मेरी आवाज को
मुझे ख़त्म नही कर पाओगे
आखिर किसान हूँ
बीज की तरह दबकर
उगना जानता हूँ
झेल लूंगा तुम्हारी तानाशाही को
मौसम की मार जैसा,
जितना सताओगे
बनकर पेड़, सहकर जुल्म
अपने फल को पाना जनता हूँ
दबा कर मेरी आवाज को
मुझे ख़त्म नही कर पाओगे
आखिर किसान हूँ
बीज की तरह दबकर
उगना जानता हूँ
झेल लूंगा तुम्हारी तानाशाही को
मौसम की मार जैसा,
जितना सताओगे
बनकर पेड़, सहकर जुल्म
अपने फल को पाना जनता हूँ