आखिर कब तक ?
कोई गमगीन इंसा कितना दर्द बर्दाश्त कर सकता है ?
वो मौत को सदाऐं देने पर मजबूर हो जाए तब तक !
झूठ कहते है लोग की अंधेरे के बाद सुबह होती है ,
मगर हमारी जिंदगी के अंधेरों की कोई इंतेहा नही ,
कोई बताए हम इन अंधेरों से लड़ें आखिर कब तक ?