आखिर कब तक!
I wrote the story first time.
कहानी-आखिर कब तक? (Part 1)
शादी के बाद बहुत से सपनों को मन में संजोकर,सोनिया ने दीपक की जीवनसंगिनी बनकर ससुराल में अपना कदम रखा, परन्तु कुछ दिन बाद ही,उसको इसका आभास हो गया था कि असलियत सपनों से परे थी। सास ससुर को बहु के रूप में सिर्फ एक नौकरानी चाहिये थी,जिसे अपनी इच्छा से साँस लेने की भी आजादी नही थी।
पढ़ाई में हमेशा अब्बल आने वाली सोनिया जीवन की इस परीक्षा में स्वयं को असहाय महसूस कर रही थी। उसने ससुराल वालों को खुश करने के भरसक प्रयत्न किये और हर काम को पूरी निष्ठा के साथ किया,फिर भी सास की उलाहना हर रोज यह एहसास दिलाने के लिये काफी थी कि यह परीक्षा उसके लिये आसान नही थी।
धीरे धीरे एक वर्ष बीत गया और उसके गर्भ में नन्हा अंश पलने लगा,उसको तो मानो जीने की वजह मिल गयी थी। इस खबर ने ससुराल पर एक वज्रपात किया, सास ससुर के व्यवहार में पहले से ज्यादा बेरूखी आ गयी थी,हर पल उसको इस बात का उलाहना दिया जाने लगा कि माँ बनने की इतनी जल्दी क्या थी,और बच्चे के आने से कितने खर्चे बढ़ जाएंगे। फिर अत्याचार करने का सिलसिला बढ़ता गया।
भीषण गर्मी और ज्यादातर बिजली का न रहना एक आम बात थी। इसलिये घरों में इनवर्टर लगे हुए थे।घर का काम करके जैसे ही वह आराम करने जाती। इनवर्टर का मेन स्विच बंद कर दिया जाता ताकि वह पंखा न चला सके। ऐसी हालत में जी मिचलाना और उल्टी होना उसको निरतंर कमजोरी का अहसास कराता था। जहाँ दो रोटी भी पूरे अहसान के साथ दी जाती थी,वहाँ फल और मेवा खाने के बारे में तो सोच भी नही सकती थी। उस पर सास के ताने,”अब तो यह सब लगा रहेगा,माँ बनने से पहले सोचना चाहिये था।अब कर रही हो तो भुगतो।”
यह सब बातें दिल को छलनी कर जाती थी।
उसकी आँखें भी आँसू बहाकर थक चुकी थी,फिर भी अश्रुधार थमने का नाम नही लेती थी।अपने दिल की व्यथा किससे कहती,पति दिनभर ऑफिस से थककर रात को वापस आते थे। यदि सोनिया कभी इसका जिक्र करती तो वह प्यार से समझा देते थे कि सब ठीक हो जाएगा।
शायद गर्भ में पल रहा बच्चा भी सहमा सा रहता था,इसलिये सोनिया को कभी उसकी हलचल भी महसूस नहीं हुई।
उसने सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया और अपने बच्चे के आने का इंतजार करने लगी।
कुछ समय पश्चात एक प्यारी सी गुड़िया ने जन्म लिया जिसकी सूरत किसी को भी मोह लेती,परन्तु इस नन्ही सी बच्ची को देखकर भी सास-ससुर का दिल नही पिघला। उनके लिए तो वो एक बोझ प्रतीत हो रही थी
जिसका बोझ कम करने के लिये उन्होंने मानवता की हद को पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सोनिया और दीपक ने अंततः घर छोड़ने का निश्चय कर लिया और दूसरे शहर में चले गए। दोनों को पता था कि उन्हें जिंदगी की कई परीक्षाएं देनी है। साथ मे एक छोटी सी बच्ची, और एक अच्छी नौकरी की तलाश करना आसान नही था। एक छोटी सी नौकरी में आय इतनी नही थी कि वो सुकून से रह सकें। कई दिन सिर्फ रूखा सूखा खाकर काम चलाना पड़ा।
सोनिया का अपने ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास था। कुछ माह पश्चात दीपक को एक कम्पनी में नौकरी मिल गयी ।धीरे धीरे उनके जीवन की गाड़ी पटरी पर आने लगी।
दीपक की मेहनत रंग लाई और उनको अच्छी कम्पनी में नौकरी मिल गयी। कुछ समय पश्चात, उनको पुत्र रत्न की भी प्राप्ति हुई और उन्होंने उस शहर में अपना मकान भी खरीद लिया।
अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करना ही सोनिया और दीपक का एकमात्र लक्ष्य बन गया था।
By:Dr Swati Gupta