” आखिर कब तक …आखिर कब तक मोदी जी “
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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प्रजातान्त्रिक प्रणालियां देशों में सरकारों की कार्य कलापों की आलोचनायें और प्रसंशा होती ही रहतीं हैं ! ….जनमानस के सुनहरे सपने सत्ताधरी महारथिओं से जुड़े रहते हैं ! उनके वादों….. ,उनकी योजनाओं….. ,उनके विचारों और उनकी दक्षताओं के आधार पर ही हम उन्हें सत्ता के सिंघासन पर बिठाते हैं !…. .अच्छे दिनों के वादे जब तमाम बड़ी -बड़ी योजनाएँ घोषणाओं के अंधकार में विलीन हो जातीं हैं ..तो आलोचनाएँ मुखर होने लगतीं हैं !… ‘आज अर्थव्यवस्था की क्या हालत है? निजी निवेश गिर रहा है. इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन सिकुड़ रहा है. कृषि संकट में है, कंस्ट्रक्शन और दूसरे सर्विस सेक्टर धीमे पड़ रहे हैं, निर्यात मुश्किल में है, नोटबंदी नाकाम साबित हुआ और गफ़लत में लागू किए गए जीएसटी ने कइयों को डुबो दिया, रोज़गार छीन लिए.गलत तरह से “अग्निवीर” सेना में लाया गया ! नए मौके नहीं दिख रहे.”….आलोचनाएँ तो विछुब्ध जनता करेगीं ही ! विरोध के स्वर गूंजेंगे ! जनमानस में आक्रोश फैलेगा ! ….
“सुशासन, स्वच्छता,
भ्रष्टाचार मुक्ति और विकास
का मुद्दा ना जाने
कहाँ सिमटकर रह गया
अबतो उसकाना ,बंटवाना और
धमकाना ही इन
चुनावों का मंत्र बन गया
स्वच्छ इंडिया, मेक इन इंडिया,
स्टार्ट अप इंडिया, स्किल इंडिया
की बात को मोदी जी भूल गए
स्वक्ष्य राजनीति के लक्ष्यों
से भटककर
मर्यादा को भूल गए ”
…………….. आज यदि मोदी जी को कोई आईना दिखलाता है तो उन्हें बुरा लगता है !….. तमाम संवेदनशील मसले में ये…. ‘मौनी बाबा ‘… बन जाते हैं ! कभी -कभी नहीं… लगातार आपकी भाषा शैली पूर्व प्रधान मंत्रिओं जैसी ना हो कर आक्रोश छलकता है !…. विरोधी दलों के नेताओं की भाषा आपके व्यक्तित्व को धूमिल बना सकती है ! ….वैदेशिक नीतिओं का मोदी जी ने कचूमर निकाल दिया !…. कहने को तो भारत के ‘वास्को डिगामा ‘ बन गए ..पर निवेशों के जाल को आपके ही असामाजिक विषमताओं ने कुतर डाला !..पडोसिओं को तो संभाल नहीं सके !…….अब जब आप विफल ‘प्रधान सेवक ‘ के तिलक को अपने ललाट पर लगा ही चुके हैं…… आपको इस बार जनमत से दूर रखा गया है ! हाँ चंद्रबाबू नायडू और नितीश के बैसाखियों के सहारे आप सत्ता पर तीसरी बार फिर काबिज हो जाएँ पर आने वाले इतिहास को अवश्य अवलोकन करते रहें !
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
दुमका