आखिरी सफर
आखिरी सफर
कुछ पुष्प चढ़ाकर कब्र पर नमन हमें वो कर गई
था प्यार उसको मुझसे ये अनुभव कराकर चली गई
हां प्यार सच्चा होता है ये एहसास हमें वो करा गई
जिंदगी की आखिरी सफर में साथ मेरा निभा गई
हां प्यार तुझको हमसे था ये तेरी नम निगाहें बता गई
आंसुओं का एक समंदर तेरी आंखों में दिखाई दे गई
सिसक रही तेरी लब्जें हर एहसास हमें करा गई
जिन्दगी में प्यार का एहसास न कभी मिला हमें
तेरी ही प्यार की चाहत ने कब्र में हमें सुला दिया
जिन्दगी की आखिरी सफर में आकर
रुलाकर हमें वो चली गई
जिंदगी की आखिरी सफर में साथ मेरा निभा गई
थी प्यारी सी मैना वो मैं तोता उसका बन न सका
उसके प्यार के घोंसले में जीवन में कभी मैं रह न सका
थीं बातें उसकी प्यारी प्यारी मेरे दिल को चुरा कर ले गई
थी जुल्फें आंखें काली काली मन को मोहित कर गई
जिंदगी की आखिरी सफर में साथ मेरा निभा गई
कुछ पुष्प चढ़ाकर कब्र पर नमन हमें वो कर गई
युवा कवि/लेखक
गोविन्द मौर्या – प्रेम जी
सिद्धार्थनगर , उत्तर प्रदेश (भारत)