आखिरी खत
कितना मुश्किल है
दिल के जज़्बातों को
कागज़ पर उकेरना,
अहसासों को
अल्फ़ाज़ों में समेटना,
कोशिश कर रहा हूँ, अपने
हाल ए दिल को, इस खत में
तुम तक पहुँचा सकूँ ।
जबसे हुई है,
हमारे – तुम्हारे दरमियां ये दूरियाँ
ख़ामोश लगती हैं धड़कनें
बेखबर, गुमशुम सा
भटकता रहता हूँ, वीराने सी
नज़र आती हैं रौनकें अब
ज़माने की, जानता हूँ
मुमकिन नहीं, रिवाजों की बेड़ियाँ
तोड़कर, दुबारा लौटकर आना,
पर ये दिल बिना तुम्हारी
छुअन के, धड़कनें को
तैयार नहीं ।
जला देना, बेशक मेरे सारे
खतों को, पर ये आखिरी खत
सँभालकर रखना, शायद
ज़िन्दगी के किसी मोड़ पर
जरूरत पड़ जाए
तुम्हें, मेरी……
✍अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०