आख़िर कब तक , कब तक आख़िर
सिसक सिसक कर रात बिताना आख़िर कब तक कब तक आख़िर
सबसे अपना दर्द छुपाना आख़िर कब तक कब तक आख़िर
सबके खातिर जीना लेकिन अपनी कोई फ़िक्र न करना
ख़ुद को यूं दिन रात सताना आख़िर कब तक कब तक आख़िर
अहबाबों से कहते हो तुम क़सम ख़ुदा की अच्छा हूं मैं
झूठी सच्ची क़समें खाना आखिर कब तक कब तक आखिर
सेहत ठीक नहीं है फिर भी पल भर को आराम न करना
दौड़ भाग में उम्र बिताना आखिर कब तक कब तक आखिर
तुमको हाल पता है अपना कितना ज़हर पिया है तुमने
फिर भी महफ़िल में मुस्काना आख़िर कब तक कब तक आख़िर
शिवकुमार बिलगरामी