आख़िरी मुलाक़ात ghazal by Vinit Singh Shayar
याद आ रही है आख़िरी मुलाक़ात साहब
बहके बहके से हमारे वो जज़्बात साहब
भले ही आज तन्हा हैं महफ़िल में यहाँ हम
कभी इन हाथो में था उनका हाथ साहब
मत बेवफ़ा कहो उसे मैं हाथ जोड़ता हूँ
बदल ना पाएँ अपनी ख़यालात साहब
मत पूछ ख़ैरियत हम जरा बीमार हैं
हिजरत में कट रही हमारी रात साहब
हर मज़हब के ठेकेदार बैठे हैं यहाँ जानी
बताना मत किसी को अपनी जात साहब
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar
new ghazal akhiri Mulaqat