आखरी यादें
बिता दिया वक्त उसके लिए मैंने भुला दिया हर शख्स उसके लिए मैंने,
ठहरे आज भी हैं उसकी महफिल की खातिर,
किए हैं कई दान उसके लिए मैंने,
उसकी सौतन (कलम) खामखा नाराज हो बैठी है बचाए थे जो शब्द उसके लिए मैंने,
मेरी मोहब्बत अब समझदार बन बैठी है
मत कर याद उसको अब वो
किसी और से प्यार कर बैठी है !
लेखक- आशीष गुर्जर