आखरी खत
तुझसे प्रेम का इजहार कर पछ्ता रहा हूँ मैं
खत लिख कर प्रेम का मैं शरमा रहा हुँ मैं |
मुझे खुद पर खुद के किये का भरोसा नही रहा
ऐसा लगा कि बिन नाव के बेहता जा रहा हुँ मैं |
आदमी हुँ आदमी से प्यार होगा ही यकीनन
तुझ से मगर मैं प्यार कर पछ्ता रहा हुँ मैं |
देकर सदायें थक चुका हुँ कई बार मैं तुझे
पहुंची के नही पहुंची यही सोच के घबरा रहा हुँ मैं |
छोड़ो चलो नसीब मिरा देता है मुझको ताने
तुम तो सुनोगी ही नहीं खामख्वा मैं सिर खपा रहा हुँ मैं |
आजाद परिंदा था मैं अपने वतन की रौनक था
दिल क्या लगाया तुम से जो दुख पा रहा हुँ मैं |
तुझसे प्रेम का इजहार कर पछ्ता रहा हूँ
खत लिख कर प्रेम का मैं शरमा रहा हुँ मैं |
मुझे खुद पर खुद के किये का भरोसा नही रहा
ऐसा लगा कि बिन नाव के बेहता जा रहा हुँ मैं |
लिखा है खत आखरी इसी उम्मीद से तुझे
शायद सुनो सदा जो दोहराये जा रहा हुँ मैं |
दीदार को तुम्हारे सोया नहीं ये अबोध बालक
गलती हुई है मुझसे इसी बात की सजा पा रहा हुँ मैं |