“आक्रोश”
इस तरह से ग़मो मे,
डूबा हूँ मैं!
जैसे दुनिया के हर शख्स से,
रुठा हूँ मैं!
आँसुओ से लिखने को,
मैं सरहदों का दर्द,
फिर से कलम लेकर,
एक बार उठा हूँ मैं!
वो जो प्यार की बोली तक,
समझे नही!
बार-बार सम्भाले से,
सम्भलते नही!
जी तो चाहता है उन्हें,
चिरकर रख दूँ!
मगर हमारे तेवर तो,
सरहदों पर चलते नही!
एक बार ऐलान-ए-जंग,
किया तो जाए,
दुश्मनी ही सही,
खुल के किया तो जाए!
हमारे जवान तैयार है,
धूल चटाने को उन्हें!
एक बार हमारे जवानो को,
इजाज़त दिया तो जाए!
उनके बुझ-दिली का सिलसिला,
भी मिटा देंगे!
हम उनका नामो-निशा,
तक मिटा देंगे!
गुरुर है उन्हें अगर,
अंधेरो मे वार करने का!
हम दिन दहाड़े उनका गुरुर,
मिटा देंगे!
(((युवा कवि ज़ैद बलियावी)))