आके चाहे चले जाते, पर आ जाते बरसात में।
गीत
सावन की है रात अंधेरी, डर लागत है रात में।
आके चाहे चले जाते, पर आ जाते बरसात में।
बिजुरी चमकै बदरा गरजैं, मन हमरा घबराए।
पवन चलै जब जब बारिश मां, हिय मां आग लगाए।
नहीं चाहिए पायल कंगन भाड़ में जाए बिछुआ।
खाय गुजारा करि लेबे हम दोनों टाइम सतुआ।
तुम हो छप्पन भोग लगत है सूखी रोटी भात में।….आके चाहे
छै महिना से जादा हुईगे, बेटवा लौटि नहीं आवा।
कैसन है परदेश मा कौनो अब लौ खबर नहीं लावा।
गांवन गांवन मंदिर मस्जिद अब हुई रहा सियासत मा।
हिन्दू मुस्लिम हुए पड़ोसी घर गौहान रियासत मा।
सोचौ सब बटि गए हिंयां पर धरम करम और जात में।…. आके चाहे
सुख दुख की चिंता है नाहीं, सब कुछ हॅंसि के सह लेती।
तुम होते तौ दिल की सारी बातैं तुमसे कह लेती।
दिल में हैं तूफान हजारों, सब अंदर ही घुमड़ि रहे।
धन तौ है नाहीं पर तन के दुश्मन हर दिन उमड़ि रहे।
तन मन तुम्हारा और न कोई हाथ लगावै गात में।
….. आके चाहे
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी