आकृष्ट
कोई भी क्षण मानस पटल पर सहज ही नहीं छा जाता है उसके लिए असहज पृष्ठभूमि हो सकती है जो उसे दूसरों से भिन्न करती है।सौन्दर्य कण कण में विराजमान होता है पर हर कोई सब ओर सहज ही आकृष्ट नहीं हो पाता उसके लिए विशेष दृष्टिकोण और मापदंड चाहिए तभी किसी के लिए हृदय स्पंदित होता है यही जीवन संचयन है किसी विशेष की स्मृति आकृति अतः कोई भी विशिष्ट कर्म व्यर्थ नहीं जाता वरन् सैकड़ों को प्रेरित प्रफ्फुलित करता है इसका कोई मूल्यांकन नहीं क्योंकि यहां दृष्टि विशेष ही मुख्य स्रोत है।यही जीवन की सार्थकता है यहां कुछ भी सूत्रबद्ध नहीं अन्यत्र यह इतना प्रासंगिक न हो यहां एच एक प्रकरण अपनी महत्ता रखता है।कहा जा सकता है कि किसी रंगधर्मी को कठपुतली नचाने में जो विशेष महारत होती है वैसी ही सिद्धहस्त कला यहां अनिवार्य है किंतु उतनी ही मुखरता देखने वाले की दृष्टि में भी हो तभी वह मुक्तकंठ से कार्यकुश्लता को अभिव्यक्त कर सकता है इस तरह से दोनों ही जीवन के अभ्भिन्न अंग है और एक दूसरे के पूरक हैं।
मनोज शर्मा